मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009

मेरी दो कवितायें...


(१)
हम गिला करे तो किससे,
शिकवा भी करे तो किनसे ।
बड़े खामोसी से वो आए,
मेरी निस्सार जिंदगी को रोशन करने ।
किया भी और हो चले,
वे अपने रास्ते।
उस भड़की चिंगारी को
(जो उन्होंने लगायी थी )
दफ़न करू भी तो कैसे ,
आख़िर लड़ना भी तो है मुझे ,
ख़ुद से - उसी के भरोसे ।
(२)
कल तक-
जब भी डर लगता था अकेले ,
गम दे दिया करते थे मेरा साथ।
पर न जाने हुई कौन सी खता,
उन्होंने छोड़ दिया मेरा हाथ।
सोचा-
कर लुंगा दोस्ती तनहाइयों से,
जी लुंगा बाकी जिंदगी उसी के दम पे।
पर भाग्य को यह भी नही बदा,
एक बार फिर से तनहाइयों ने ,
किया मुझ से किनारा ।
कर लिया था उन्होंने,
एक बार फिर से -
ख़ुद को मुझ से रुसवा ।


यह मेरी पहली काव्य रचना है,जिसे ब्लॉग पर पोस्ट कर रहा हूँ. -
रोहित



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