बुधवार, 17 दिसंबर 2014

लूटा हुआ इंसान !



हर ओर लूटा हुआ इंसान नजर आता है,
जहाँ देखो हैवानियत का मंजर नजर आता है।


जिन्होंने है इंसानियत की कब्रे खोदी,
उन्हीं के साथ हमारा खुदा नजर आता है ।


देश हो चाहे कोई -भारत या पाकिस्तान ,
अपने ही बच्चों के खून से सना नजर आता है।


हैवानियत का कैसा नंगा नाच है यह ,
देख,रूह डरा सहमा-सा नजर आता है।


#१६.१२.२०१४ /रोहित 
‪#‎पेशावर‬ : हे ईश्वर उन बच्चों की रूह को शांति देना जिनका बस इतना सा गुनाह है कि वो आदम की औलादे थी और इंसानियत की एकमात्र बच रही आखिरी प्रतीक ।

आतंक का कोई मजहब या देश नही होता!इसकी जितनी निंदा की जाये कम है ।

रविवार, 15 जून 2014

नीलकंठ ...

(चित्र : गूगल से साभार )



आपकी उम्मीदें स्वप्न है अभी भी ,
मेरा जीवन अबूझ पहेली है अभी भी ,
ऐसे में जब मेरा संघर्ष ,
आपका संघर्ष बन चूका है ,पिता,
आप नीलकंठ हो चुके हो ,
मैं दिन-ब-दिन जहर हो रहा हूँ। 
( एक नालायक लड़के की चाहत है वो भी अपने पिताजी सा बने। )

सोमवार, 24 मार्च 2014

शेष !!!

चित्र:गूगल से साभार 

लाख चाहता हूँ ,
शब्दो से तुम्हे, 
पूरा का पूरा,
समेट लूँ। 


वही नैन-नक्श ,
प्यारी सी मुस्कान ,
शब्द भी  चुन लूँ ऐसे,
जो बया कर जाय तेरा ही अक्स। 


तुम्हारी मासूमियत ,
तुम्हारा बावलापन ,
लाख चाहूँ कुछ लिख जाऊँ  ऐसा ,
कि हो सके तुम्हारी इबादत। 


जितना भी चाहूँ तुम्हे शब्दों में समेटना,
ऐसा ही कहाँ हो पाता है,
थोड़ा नहीं ,
बहुत कुछ शेष रह जाता है।


आज बस इतना ही.................... 
#रोहित /२४. ०३. २०१४ 

शुक्रवार, 14 मार्च 2014

प्रतिबिम्ब !!!

चित्र : सिर्फ सांकेतिक,गूगल से साभार।  


ये जो मैं हूँ,
क्या ये मैं ही हूँ ?
नहीं अब मैं बचा ही कहाँ हूँ ,
अब तो तुम भी हो !

तुमसे इतर,
मैं था भी तो क्या था ?
जो तुम हो,
तो मैं हूँ ! 

तुम्हारे होने से ,
मेरा होना है ,
तुम्हारे न होने से,
मेरा होना भी क्या है! 

सुनो, 
ये जो मैं हूँ ,
तुुम्हारा ही, 
प्रतिबिम्ब हूँ! 

जो तुम हो ,
वही मैं हूँ,
जो तुमसे अलग हूँ ,
कुछ भी तो नहीं हूँ!


बड़े दिनों बाद कुछ लिखने का मन हुआ, जो बन पड़ा वो यही है। अच्छा बुरा जो भी हो तुम्हारा ही है। 
# रोहित / १४. ०३. २०१४ 

रविवार, 16 फ़रवरी 2014

तुम्हारा गढ़ा जाना ..

चित्र: गूगल से साभार 












किसी का किसी के लिए खास बन जाना ,
कुछ तो रही होगी बात ,
युँ ही नहीं होता मुहब्बत के पैमाने का भर जाना। 

कहीं कोई लिख रहा है ,
कुछ कच्चे कुछ पक्के शब्दों के सहारे , 
यादों की कूची में भिगो 
तुम्हारे प्रेम के अहसास सारे !

जितनी की मासूम तुम हो ,
उतने ही मासूम हैं इन शब्दों की कहानी भी ,
जैसे गढ़ती हैं तुम्हारी नाजुक उंगलिया, परियां ,
आज वैसे ही गढ़ रहा है वो तुम्हें भी !

(प्रेम को समझना भी चाहे कोई तो कैसे ........... )
 --------- रोहित /16.02.2014 

शुक्रवार, 15 जून 2012

लौटना तुम्हारा ??


शब्द  जो  मेरे  ह्रदय  के  परतों में  बसते  है,
उन्हें  मैंने  स्वतंत्र  है  किये  ;
वही  शब्द  व्योम  में  प्रतिध्वनित  होते  है ,
अनंत  तक  दुरी  तय  कर  मेरे  पास  ही  लौट  है  आते  ..

सिर्फ  शब्द  ही नहीं ,
शब्दों  के  साथ  एक  तस्वीर  भी  बसती है  मेरे  ह्रदय  में ;
जो  तुम्हारी  है ,
शब्दों  के  माफिक  तुम्हे  भी  बहुत  चाहा है  मैंने ..

जाने  क्यों  ऐसा  लगा ...तुम  तड़प  सी  रही  हो वहाँ  ,
फिर  कब  तक  कैद  करता  तुम्हे  ;
शब्दों  के  सहारे  मैंने  तुम्हे आजाद  कर दिया ,
जाओ   प्रिये  तुम  भी  स्वतंत्र  हो  मेरे  शब्दों  जैसे ..

असल  प्रेम  में  भी  तो  आजाद  होना  है ,
शब्द  आजाद  है  मेरे ...अब  अपने  नहीं  रहे ;
बावजूद  इसके  वे  मेरे  पास  है  आते  ,
मेरे  खालीपन  के  पूरक  है  बन  जाते ..

लो  तुम  भी  आजाद  हो ..अब  अपनी  नहीं  रही ,
जैसे  शब्द  अनंत  से  प्रतिधवनित  हो -
मुझे  तलाशते ,
मेरे  पास  ही  है  लौट  आते ..
आज  तुम्हे  याद  करते  हुए ,
सोच  रहा  हूँ  ;
क्या  तुम  भी  लौटोगी -
मेरे  सूनेपन  में  मेरा   अपना  सिर्फ  मेरा होके ...??

-----------ज्यादा क्या लिखू समझना बस...
रोहित /२३.०४.२०१२

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बुधवार, 7 मार्च 2012

कौन तुम?

कौन तुम?
मेरे मौन की अभिव्यक्ति,
मेरी सहज प्रकृति!!


कौन तुम?
मेरे चित्त की आवृति,
मेरे जीवन की आत्म-स्वीकृति!!


कौन तुम?
मेरी अवचेतन मनोवृति,
मेरे चेतना की काव्य-कृति!


कौन तुम?
मेरे निज की प्रेरणा शक्ति,
मेरे अंतस की आत्म-अनुभूति!!


कौन तुम?
मेरे ह्रदय की ब्रह्म-बाती,
मेरे जीवन की अखंड दीप-ज्योति!!


 कौन तुम?
मेरे प्रेम-धारणा की आसक्ति ,
मेरे बुद्धत्व की अनासक्ति!!


कौन तुम?
मेरे अंतर्मन की लौकिक प्रीति,
मेरे रक्त-कण से प्रस्फुटित अलौकिक प्रेम की परिणिती!!


कौन तुम?
प्रकृति प्रदत्त मेरी आत्मज शक्ति,
या अनुरुक्ति की धरा पर अवतरित परा -शक्ति!! 

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" कौन तुम......इतना कुछ जानने के बाद,समझने के बाद भी मेरे लिए रहस्य बनी हो..तुम कही मेरे ह्रदय में रची-बसी हो ,मैं तुमसे कभी विरत न रहा...बावजूद इसके जो रहस्य का आवरण तुम्हारे ऊपर है..मेरे समझ से परे है..मैं इसी गुत्थी को सुलझाने की कोशिश में जुटा हूँ..तब शायद तुम भी मुझे अपने करीब पाओगी ....इसी उम्मीद में..."---रोहित ..

 


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