शब्द जो मेरे ह्रदय के परतों में बसते है,
उन्हें मैंने स्वतंत्र है किये ;
वही शब्द व्योम में प्रतिध्वनित होते है ,
अनंत तक दुरी तय कर मेरे पास ही लौट है आते ..
सिर्फ शब्द ही नहीं ,
शब्दों के साथ एक तस्वीर भी बसती है मेरे ह्रदय में ;
जो तुम्हारी है ,
शब्दों के माफिक तुम्हे भी बहुत चाहा है मैंने ..
जाने क्यों ऐसा लगा ...तुम तड़प सी रही हो वहाँ ,
फिर कब तक कैद करता तुम्हे ;
शब्दों के सहारे मैंने तुम्हे आजाद कर दिया ,
जाओ प्रिये तुम भी स्वतंत्र हो मेरे शब्दों जैसे ..
असल प्रेम में भी तो आजाद होना है ,
शब्द आजाद है मेरे ...अब अपने नहीं रहे ;
बावजूद इसके वे मेरे पास है आते ,
मेरे खालीपन के पूरक है बन जाते ..
लो तुम भी आजाद हो ..अब अपनी नहीं रही ,
जैसे शब्द अनंत से प्रतिधवनित हो -
मुझे तलाशते ,
मेरे पास ही है लौट आते ..
आज तुम्हे याद करते हुए ,
सोच रहा हूँ ;
क्या तुम भी लौटोगी -
मेरे सूनेपन में मेरा अपना सिर्फ मेरा होके ...??
-----------ज्यादा क्या लिखू समझना बस...
रोहित /२३.०४.२०१२
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