शुक्रवार, 15 जून 2012

लौटना तुम्हारा ??


शब्द  जो  मेरे  ह्रदय  के  परतों में  बसते  है,
उन्हें  मैंने  स्वतंत्र  है  किये  ;
वही  शब्द  व्योम  में  प्रतिध्वनित  होते  है ,
अनंत  तक  दुरी  तय  कर  मेरे  पास  ही  लौट  है  आते  ..

सिर्फ  शब्द  ही नहीं ,
शब्दों  के  साथ  एक  तस्वीर  भी  बसती है  मेरे  ह्रदय  में ;
जो  तुम्हारी  है ,
शब्दों  के  माफिक  तुम्हे  भी  बहुत  चाहा है  मैंने ..

जाने  क्यों  ऐसा  लगा ...तुम  तड़प  सी  रही  हो वहाँ  ,
फिर  कब  तक  कैद  करता  तुम्हे  ;
शब्दों  के  सहारे  मैंने  तुम्हे आजाद  कर दिया ,
जाओ   प्रिये  तुम  भी  स्वतंत्र  हो  मेरे  शब्दों  जैसे ..

असल  प्रेम  में  भी  तो  आजाद  होना  है ,
शब्द  आजाद  है  मेरे ...अब  अपने  नहीं  रहे ;
बावजूद  इसके  वे  मेरे  पास  है  आते  ,
मेरे  खालीपन  के  पूरक  है  बन  जाते ..

लो  तुम  भी  आजाद  हो ..अब  अपनी  नहीं  रही ,
जैसे  शब्द  अनंत  से  प्रतिधवनित  हो -
मुझे  तलाशते ,
मेरे  पास  ही  है  लौट  आते ..
आज  तुम्हे  याद  करते  हुए ,
सोच  रहा  हूँ  ;
क्या  तुम  भी  लौटोगी -
मेरे  सूनेपन  में  मेरा   अपना  सिर्फ  मेरा होके ...??

-----------ज्यादा क्या लिखू समझना बस...
रोहित /२३.०४.२०१२

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बुधवार, 7 मार्च 2012

कौन तुम?

कौन तुम?
मेरे मौन की अभिव्यक्ति,
मेरी सहज प्रकृति!!


कौन तुम?
मेरे चित्त की आवृति,
मेरे जीवन की आत्म-स्वीकृति!!


कौन तुम?
मेरी अवचेतन मनोवृति,
मेरे चेतना की काव्य-कृति!


कौन तुम?
मेरे निज की प्रेरणा शक्ति,
मेरे अंतस की आत्म-अनुभूति!!


कौन तुम?
मेरे ह्रदय की ब्रह्म-बाती,
मेरे जीवन की अखंड दीप-ज्योति!!


 कौन तुम?
मेरे प्रेम-धारणा की आसक्ति ,
मेरे बुद्धत्व की अनासक्ति!!


कौन तुम?
मेरे अंतर्मन की लौकिक प्रीति,
मेरे रक्त-कण से प्रस्फुटित अलौकिक प्रेम की परिणिती!!


कौन तुम?
प्रकृति प्रदत्त मेरी आत्मज शक्ति,
या अनुरुक्ति की धरा पर अवतरित परा -शक्ति!! 

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" कौन तुम......इतना कुछ जानने के बाद,समझने के बाद भी मेरे लिए रहस्य बनी हो..तुम कही मेरे ह्रदय में रची-बसी हो ,मैं तुमसे कभी विरत न रहा...बावजूद इसके जो रहस्य का आवरण तुम्हारे ऊपर है..मेरे समझ से परे है..मैं इसी गुत्थी को सुलझाने की कोशिश में जुटा हूँ..तब शायद तुम भी मुझे अपने करीब पाओगी ....इसी उम्मीद में..."---रोहित ..

 


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