तब उंगलिया थाम ,
कभी चलते थे साथ आप पिता,
जब मैं चलना सिख रहा था,
डग दो डग भरते जो कभी कदम मेरे लड़खड़ाते थे,
दौड़ आप मुझे गले लगाते थे पिता!
मुझे बोलना नहीं आता था पिता,
लोगो ने कहा था माँ से तब,
गूँगा होगा तेरा बेटा,
तब जो शब्द निकले थे मेरे मुख से-
पा.....पा.....पा...पापा,
उस रोज रोई बहुत थी माँ,पिता!
तब बच्चे थे ,
जब सोने वक़्त मेरे और छोटु के जिद पर,
रंगा-सियार की कहानी सुनाते थे पिता ,
क्या बताये हम-
वे कहानिया जेहन में हमारे,
अब भी शास्वत है पिता!
डर लगता था तब,
जब कभी बिजलीया आसमाँ में चमकती थी,
तब अपने सीने से चिपटा-
सुलाते थे आप पिता,
तब कितने सुकून से हम,
सोया करते थे पिता!
दसवीं के इम्तिहान थे तब,
जब मेरे पेपर्स ख़राब हुए थे,
रोया कितना था मैं पिता,
याद है,
गले लगा तब कहा था आपने पिता-
मैं हूँ न बेटा!
चार साल पहले ,
जब मुझे बनारस छोड़ने आये थे पिता,
मैंने देखा था,
आँसू थे आपके आँखों में पिता,
कर्ज कभी उनका-
जो चुकता कर पाऊ मैं,
सोचना बेमानी है पिता!
चाहे अभाव में ,
कटती हो जिंदगी आपकी,
महसूस कभी होने न दिया आपने पिता,
दर्द हमारे हिस्से का भी,
नीलकंठ की भाति पिया आपने,
उसे मैं ही कैसे ,
भूल जाऊं पिता!
दिन कोई ख़ास क्या बताऊ,
स्नेहिल प्रेम शास्वत जो मुझ पे,
हर रोज आपका बरसता है-
उसका शब्दों से,
उदगार कैसे जताऊ पिता..
आज आप दूर हो मुझसे,
आप याद आते हो बहुत पिता!
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चाहे फादर्स डे हो या मदर्स डे...ऐसे में इन दिनों का कोई ख़ास मतलब नही रह जाता-
जबकि माँ और पिता जी का प्यार उनके बच्चों पर रोज ही बरसता है................
रोहित/१९.०६.२०११ /०८:५१ सायं