जानते हो.....
कल रात सर में,
तेज दर्द हुआ था मुझे.
मालुम नहीं कहाँ से-
लेकिन हाँ,
वो आ बैठी थी मेरे सिरहाने!
ज्यादा तो नहीं...
पर इतना याद है मुझे,
वह तमाम रात,
अपने आसुओं से,
भिगो-भिगो सर पे रक्खी पट्टी,
बदलती रही.
शायद...
कुछ नाराज भी थी,
बोली..रोहित अपना ख्याल भी,
कर लिया करो कभी.
पकड़ हाथ उसका तब कहा मैंने उससे,
कैसे...अब तुम साथ भी तो नहीं होती मेरे?
वह...
मुस्कुराई थी तब,
झुका सर अपना मेरे पलकों को चुम,
कहा उसने-
पगले..ऐसा क्यों कहते हो तुम,
क्या ऐसा भी हो सकता है भला कभी!!!!!!
(चित्र-गूगल से साभार)
जब आप कल्पना की दुनिया को जीते हो..
और ऐसा कुछ हो जाता हो!
तो यथार्थ व्यर्थ हो जाता है...है न ?
...............रोहित!!!!!!
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आप मेरी इस रचना को यहाँ भी देख सकते हैं....
http://urvija.parikalpnaa.com/2011/02/blog-post_26.html
7 टिप्पणियाँ:
बहुत कोमल से एहसास ....कल्पनाएँ खुशी देती हैं ..
बहुत खूब रोहित जी .... गुलाबी एहसास .. दिल से लिखी ... और सीधे दिल तक उतर गयी ये रचना .... लाजवाब ...
amazing... ise vatvriksh ke liye bhejo parichay, tasweer blog link ke saath
वाकई बहुत प्यारा अहसास है...
सुन्दर और बहुत कोमल एहसास हैं
बहुत सुंदर . प्रेम भरी रचना. शुभकामना.
सुन्दर और बहुत कोमल एहसास हैं
प्रेम भरी रचना. शुभकामना.
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