रविवार, 6 दिसंबर 2009

पूछता हूँ, ये कैसा दिवस ?



(१)
ये कैसा शौर्य दिवस.....................
जिसने बढाई है सामाजिक विद्वेष,
और जिसके लपटों से..................
धू-धू कर जलता है मेरा अंतस।

पूछता हूँ ,ये कैसा शौर्य ?
जिसके हथोड़े ने,
सिर्फ़ मस्जिद/मन्दिर ही नही तोडा।
बल्कि जिसके चोट ने कितने घर तोड़े,
और कितनो को बेघर कर छोड़ा ।

पूछता हूँ ,ये कैसा शौर्य ?
जिसने लुटी अपने ही,
बहु-बेटिओं की अस्मत।
और,नंगी खड़ी कर दी ,
सरेआम इंसान की आदमियत।

पूछता हूँ,
ये कैसा दिवस ?
(२)
ये कैसा काला दिवस....................
जिसने बढाई है सामाजिक विद्वेष,
और जिसके लपटों से..................
धू-धू कर जलता है मेरा अंतस।

पूछता हूँ ,ये कैसा मातम ?
जो सिर्फ़ चंद ईटो के ढहने पर,
मनाई जाती है।
और ,उन वर्षो के विश्वास का क्या,
जिसकी नीवं धर्म के बलवों से हिल जाती है।

पूछता हूँ ,ये कैसा मातम ?
जो चंद घटिया लोगों के भाषण पर,
हर बरस हाहाकार कर उठता है।
जिसके बदले में हमें सिर्फ़ नफरत,
और,अपनों से महरूम होने की सजा ही मिल पाता है।

पूछता हूँ ,
ये कैसा दिवस ?
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>>>>>>>>हर बार ०६ दिसम्बर यही होता है.........कुछ लोग अपनी रोटी सेकने के लिए इन मुद्दों को उछालतें हैं
.........और हम बेबस हो जाते हैं हमेशा की तरह -"रोहित "











4 टिप्पणियाँ:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

in prashno ka kahi koi jawab nahi, prashn laut aate hain ashay,nirash, rundhe gale ke saath...............par har prashn ek aag hai? jwalant hai

Dr.R.Ramkumar ने कहा…

आपके अंदर आग है। इसमें कुछ भी पकाते वक्त अपना ख्याल रखें । कुछ आंखें हमेशा सच बोलनेवालों का पीछा करती हैं।
अपने औजार हमेशा तराशते रहें।

शेरघाटी ने कहा…

bahut hi maarmik kavita!

शेरघाटी ने कहा…

bhai word varification hata dijiye comment karne me samay atirikt lagta hai.

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