लिखता तो हूँ॥
पर उन्हें पढ़ अब रोम-रोम,
स्पंदित नहीं होता।
क्योंकि शायद अब उन लिखे गए शब्दों में,
दिल से निकला हुआ,
उदगार भी तो नहीं होता।
न ही मेरे लिखे गए शब्दों में ,
अब चुलबुलाहट होती है,
और न ही कोई गंभीरता।
बस अगर अब उनमे कुछ होता भी है,
तो कविता मूल भावना के खिलाफ ,
सिर्फ औ' सिर्फ नीरसता ।
ऐसे में जब शब्द माला मेरे न चाहने के बावजूद भी,
मेरे सामने ही,
टुट-टुट कर है बिखर जाता-
एक और कविता के अधूरे रहने पर ,
मेरा मन हर बार की तरह ,
अप्रतिम कष्ट और निराशा से है भर जाता।
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जब मन के भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाता हूँ,
तो कुछ ऐसा ही महसूस होता है.....
ऐसे में जब की लेखन खाद-पानी की तरह,
जरुरत बन गया हो।
--रोहित......
21 टिप्पणियाँ:
mujhe milti rahi khushboo
shabdon ke is bagiche me
khuli hawa bhi dil ko chhuti gai....
क्या हुआ??
ऐसा क्यों लिखा???
दर्द तो ब्यान हो रहा हैं...तू दर्द का ही तो पैगाम लिख रहा हैं...अधूरी कविता अधूरे सपनों कि तरह होती हैं....दोनों में से कोई भी नहीं जी पाता....
Rohit!
jane kyun likha hoga tumne...lekin bhai,
Tumhare geeton ki khushboo mil jaati hai hame,
aakraant shabd nahi gunjit hote.
is likhan se upajte hain jo paudhe,
dekho gaur se, nahi rote.........
Aur kavitaa ka kya kahun... achchha shilp aur achchhe bhav..keep it up.
कभी आता है ऐसा वक्त भी की मन बेचैन होता है और लिखा नहीं जाता...पर फिर से एक नए आगाज़ के साथ शुरू होती है कविता और मन तृप्त भी होता है...शुभकामनायें
ये जीवन की अधूरी कविता का दर्द है ... बहुत ही गहराई से लिखा है आपने ...
जीवन के बहुत से रंग हैं..यह भी उनमे से एक है......जीवन में पूरा होने की तलाश ही तो हमे भटका रही है...आप की इस अधूरी कविता का यही तो दर्द है...। बहुत गहरे उतर रहे हो.....मित्र...
bhaut khub likha hai apne...adhuri si magar poori kavita ko
बहुत ही गहराई से लिखा है आपने
mere blog par aa kar mera hoshla badbane ke liye dhanyawaad.
अधूरी रचना की पीड़ा , खूब बयान किया
bahut hi achhi tara likha aaapne....
yun hi likh te rahein....
mere blog par aane ke liye dhanyawaad...
regards
shekhar
behatar bhaav
मुझे तो वही चुलबुलाहट नज़र आई, साथ में घम्भिरता भी ... बस अपनी भावनाओ और एह्साओ की खाद और पानी से एसे ही सिंचित करते रहो, अपने आप् शब्द नयी खुशबू लिए झुमने लगेगे ...!
dhanywad rohit ji aapke sujhav k liye...!!
aasha karti hu ki aap isi tarh apne sujhav hamse bantte rahenge..
अधूरी कविता बहुत दर्द देती है.
बहुत सुन्दर
और हाँ आपके ब्लाग का कलेवर बहुत सुन्दर है
achchi tarah vyakt ki hai apne bhavnayen.
कविता की उलझन बढ़िया दिखाई है
अधूरापन कई तरह का होता है... कहीं दिखता है कहीं सिर्फ़ उसका एहसास ही किया जा सकता है.... इस एहसास की बेहतरीन अभिव्यक्ति
aapki next kavita ka intjaar hain rohitji..
shabdon ke bikhre kanon ko koi yun sanjo sakta hai
ye abhi jana maine
use anmol bana sakta hai
ye abhi jana hai maine,,,,,,,bahut hi badhiyaa
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