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चित्र: गूगल से साभार |
किसी का किसी के लिए खास बन जाना ,
कुछ तो रही होगी बात ,
युँ ही नहीं होता मुहब्बत के पैमाने का भर जाना।
कहीं कोई लिख रहा है ,
कुछ कच्चे कुछ पक्के शब्दों के सहारे ,
यादों की कूची में भिगो
तुम्हारे प्रेम के अहसास सारे !
जितनी की मासूम तुम हो ,
उतने ही मासूम हैं इन शब्दों की कहानी भी ,
जैसे गढ़ती हैं तुम्हारी नाजुक उंगलिया, परियां ,
आज वैसे ही गढ़ रहा है वो तुम्हें भी !
(प्रेम को समझना भी चाहे कोई तो कैसे ........... )
--------- रोहित /16.02.2014
3 टिप्पणियाँ:
कोमल से अहसास है रचना में..
सुन्दर...
:-)
ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
इस जटिलता के बावजूद भी प्रेम सबको अपनी ओर आकर्षित करता है...सुंदर रचना।।।
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