रविवार, 15 जून 2014

नीलकंठ ...

(चित्र : गूगल से साभार )



आपकी उम्मीदें स्वप्न है अभी भी ,
मेरा जीवन अबूझ पहेली है अभी भी ,
ऐसे में जब मेरा संघर्ष ,
आपका संघर्ष बन चूका है ,पिता,
आप नीलकंठ हो चुके हो ,
मैं दिन-ब-दिन जहर हो रहा हूँ। 
( एक नालायक लड़के की चाहत है वो भी अपने पिताजी सा बने। )

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