मंगलवार, 30 नवंबर 2010

जीवन!!!!!!!!


क्या है जीवन?


कभी रोता है बचपन,
तो हँसता है यौवन ,
और बेबस है उम्र का चौथेपन ..
हाँ इनके मूल मे है जीवन ,
यही है जीवन!!!


शैशव-काल का भोलापन ,
या यौवन के मद में चूर हो-
किया गया पागलपन ,
फिर अतीत को झुठलाने की खातिर-
बुढ़ापे में ओढा गया साधुत्व का आवरण...
हाँ इनके मूल मे है जीवन,
यही है जीवन!!!


सतत अविरल प्रवाह है जीवन,
कभी दुग्ध-सी श्वेत तो,
कभी अमावास-सी श्यामल है जीवन
तमाम दुराग्रहो से निर्लिप्त,
विविध रंगों से युक्त-
सतरंगी है जीवन .


हाँ प्रकृति के मूल में है जीवन,
यही है जीवन!!!
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इतने दिनों के बाद पोस्ट करते वक़्त कुछ कहते नही बन रहा है...सच है,
यहाँ से दूर रहना मेरे लिए काफी तकलीफदेह था.
उम्मीद है आगे से मैं आप लोगो से निरंतर जुडा रहूँगा...
आपके प्यार व आशीर्वाद का आकांछी ------ रोहित!!!!!!

(चित्र- गूगल से साभार)

3 टिप्पणियाँ:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सटीक जीवन दर्शन

Sushil Bakliwal ने कहा…

सही है जीवन दर्शन.

M VERMA ने कहा…

हाँ शायद यही है जीवन

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